27-05-1997
04:30 PM
मुझे याद है तुम्हारी
वो पुरजोश चीख !
जिसे न चाहते हुए भी तुम्हे
दबाना पड़ा था
अपने होठो पे सारी लाली
समेट के
अपने ही दांतों से उन्हें
गड़ाना पड़ा था !
और अब उस चीख की गूंज
इक सपना बन कर तुम्हारे
शरीर में पल रही है
उस वक़्त जो आंसू ढुलक
आए थे तुम्हारे कपोलो पे
उन्होंने एक सजीव सपने का
रूप ले लिया है !
उन नमकीन मोतियों में जो
प्यार की मिठास थी
उसी मिठास के चलते तुम
ये सपना साकार कर सकती हो
हाँ ! तुम माँ बन सकती हो !
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