22-02-1994
10:00 AM
इक महजबीं का ही ग़म नहीं उठाता हूँ मैं
हर इक शख्स का ग़मगुसार हूँ मैं
फ़कत ज़ुल्फ़-ए-परीशाँ नहीं सुलझाता हूँ मैं
मुकम्मल ज़ुल्मत-ए-हयात से परेशाँ हूँ मैं
धड़कता नही दिल मेरा इक शोख़ पर ही
हर इक हसीना पर जाँ-निसार हूँ मैं
वीराँ क्यूं रहे कोई भी मयखाना-ए-चश्म
हर नज़र से पैमाना छलकाए ऐसा मयख्वार हूँ मैं
महका जाये जो हर गुल-बदन को
यकीँ जानिए ऐसी फ़स्ल-ए-बहार हूँ मैं
10:00 AM
इक महजबीं का ही ग़म नहीं उठाता हूँ मैं
हर इक शख्स का ग़मगुसार हूँ मैं
फ़कत ज़ुल्फ़-ए-परीशाँ नहीं सुलझाता हूँ मैं
मुकम्मल ज़ुल्मत-ए-हयात से परेशाँ हूँ मैं
धड़कता नही दिल मेरा इक शोख़ पर ही
हर इक हसीना पर जाँ-निसार हूँ मैं
वीराँ क्यूं रहे कोई भी मयखाना-ए-चश्म
हर नज़र से पैमाना छलकाए ऐसा मयख्वार हूँ मैं
महका जाये जो हर गुल-बदन को
यकीँ जानिए ऐसी फ़स्ल-ए-बहार हूँ मैं
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