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Sunday, December 4, 2011

वो रूबरू हुआ तो इक लफ्ज़ न कह सका

01-12-2011
12:35 P.M

वो रूबरू हुआ तो इक लफ्ज़ न कह सका
उम्र भर आईने में जिसे तकता रहा

वो पी लेता था शबनम मेरी पलकों से
ता-उम्र इक कतरे को मै तरसता रहा

वो शज़र सा लहराता फिज़ाओं में महकता था
हर दम जिस रक्स से मैं बचता रहा

वो रोशन शुज़ाओ सा महसूस होता है मुझे
इक लम्हा-ए-इश्क मेरे वजूद में पलता रहा



Saturday, November 26, 2011

अक्स जब भी देखा है आईने में हमने

04-12-2008
06:35 P.M

अक्स जब भी देखा है आईने में हमने
नज़र भर तुमको देखा है ऐसे  हमने

ज़माने के चलन से कभी सरोकार न रहा
एतबार मोहब्बत पे रखा है ऐसे हमने

वक़्त ने दी है मोहल्लत कुछ कहने की
जब की हर लफ़्ज़ कह रखा है वैसे हमने

मोहब्बत की तस्वीर को कोई तो रंग दो
हर रंग को तुमसे जोड़ रखा है जैसे हमने

कह दूं या ख़ामोश रहूँ अब बात एक है
मक़ाम मोहब्बत में देख रखा है कैसे हमने

My First ever Poem - Dec. - 1988

This is my first poem ,written in Dec. 1988

हर दिल में इक सपना - सा देखा है
हर नज़र में कोई अपना - सा देखा है

इक मेरी नज़र सुनसान - सी क्यूं है ?
अपनी डगर से अनजान - सी क्यूं है?

मुश्किल नहीं है गर रहे ज़िंदगी की इतनी
फिर मेरी ज़िंदगी परेशान - सी क्यूं है ?

समझ आता है न परेशानी का सबब
न दिल ही को कऱार आता है

सपनो में भी देख लिया रह कर
हर वक़्त तन्हाई का ख्याल आता है

Thursday, November 10, 2011

ढल जाएगा ये हुस्न तो क्या कीजिएगा

23.04.1994
4:00 P.M

ढल जाएगा ये हुस्न तो क्या कीजिएगा
हाँ मेरे शानो पर सर रख दिया कीजिएगा

फीकी जब हो जाएगी इन रुखसारों की लाली
रंग मेरे लहू का कुछ मिला लीजिएगा

ढलक-ढलक जाएगा जब ये आँचल आपका
उभरे मेरे सीने में खुद को छुपा लीजिएगा

आँखों में सरूर न अदाओं में जादू होगा
मेरे अशआरो से शबाब कुछ चुरा लीजिएगा

चाहने वाले दूर हो जायेंगे जब हुस्न के तेरे
जुनूँ मेरे जज़्बातों का फिर आज़मा लीजिएगा


वो आग थी या पानी मैं समझ न पाया

26.03.1994
12:30 A.M

वो आग थी या पानी मैं समझ न पाया
उसने जलाया भी है दिल को बुझाया भी है

उतर कर मेरे दिल में वो मचली थी बहुत
उसने मिटाया भी है मेरे इश्क को बनाया भी है

अटकी थी इक बात जो जुबां पर अज़ल से
उसने बताया भी है दिलबर को सुनाया भी है

कहने को बुरी चीज़ है शराब लेकिन
उसने घटाया भी है जिंदगी को बढ़ाया भी है

Friday, November 4, 2011

इल्तज़ा है जिंदगी से मेरी

26.06.1994
9:45 P.M

इल्तज़ा है जिंदगी से मेरी
किसी रोज़ वो मेरे घर आये

मैं सितारों को भी दावत दे दूं
कह दूं वक़्त से भी ठहर जाये

उनकी आँखों से लिपटी शबनम
काश मेरी पलकों पे ठहर जाए

रात काफी नहीं है इश्क के लिए
उस शोख़ से कहना संवर जाए

Saturday, October 15, 2011

तन्हां रातों का कट जाना आसां नहीं है

                                      26-06-1994
                                       12:05 A.M

तन्हां रातों का कट जाना आसां नहीं है
लम्हों का लम्हों में बीत जाना आसां नहीं है

हँसते हुए देखा है लोगो को बहुत
हकीकत-ए-हयात में मुस्कुराना आसां नहीं है

तेरे तसव्वुर में रहते है खोये हुए हरदम
तेरी यादों से दिल बहलाना आसां नहीं है

शोला-ए-इश्क को देती है हवा और
जाम-ए-मय में डूब जाना आसां नहीं है

Tuesday, September 27, 2011

उल्हानो का दौर चला तो ज़िंदगी बोली मुझसे,

उल्हानो का दौर चला तो ज़िंदगी बोली मुझसे,
यूं ही घबरा जाता था ? मेरी आग़ोश में आने से !

इक उल्हाना रह गया था तुम्हारा

इक उल्हाना रह गया था तुम्हारा
बाल चेहरे के तुम बढ़ाया न करो

चेहरे के बालों में होती है ख़लिश बहुत
यूं चेहरे से चेहरा टकराया न करो

अपने खुरदरे हाथों से छूते हो बदन मेरा
यूं जिस्म पे खरोंचे बनाया न करो

सुर्ख हो जाते है बेसाख्ता रूख्सार मेरे
यूं ख्वाबों में मेरे चले आया ना  करो

Sunday, September 25, 2011

दो चार बातें इश्क में कही

Ghazal - Old one

 26-06-1994
10:25 A.M


दो चार बातें इश्क में कही
दो एक ग़म दिल ने उठा लिए,

कुछ कसमें खायी कुछ वादे किये
कुछ वफ़ा किये कुछ भुला दिए ,

मेरी ख़ुशी तूं बाँटें तेरा ग़म मैं उठाऊँ
जीने के बस ये बहाने बना लिए ,

तेरे लब जो हिले मेरे अश्क क्यूं बहे?
क्यूं ये पुराने फ़साने सूना दिए  !

Thursday, September 22, 2011

मेरी खामोशियों

एक शे'र -    

07-02-1998
10:15 P.M

मेरी खामोशियों को देख कर ये अंदाज़ लगा लेना
के जज़्बात कोई मेरे दिल में भी मचलता है !

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एहसानमंद हूँ तनहाइयों तहे दिल से आपका
के अपने जिस्म से उनकी खुशबू लेता आया हूँ !

Tuesday, September 20, 2011

कागज़ पर उनका नाम कभी लिखते है मिटाते है

  Ghazal - Old one          25-03-1994
                                           7:45 P.M

कागज़ पर उनका नाम कभी लिखते है मिटाते है
बाद उनके जाने के हम ऐसे वक़्त बिताते है

कभी सुबहो ना मिली, कभी शाम ना मिली
किस तरह हुस्न  वाले  इश्क को  सताते  है

साया है उनकी ज़ुल्फ़ का उनके चेहरे का है नूर
जहां वाले जिसे शाम- ओ- सुबहा बताते है

उनको नहीं है इल्म कुछ अपने शबाब का
आईने मुकम्मल उनका हुस्न कहाँ दिखाते है

छाने लगी है मदहोशी सी बाद-ए- सबाँ  में
रखा है शहर में कदम मुहल्ले वाले बताते है

Tuesday, September 6, 2011

कुछ कहना है तुमसे मगर हालात नहीं है,

नज़्म -     एक किस्सा पुराना है....!


कुछ कहना है तुमसे मगर हालात नहीं है,
जज़्बात है दिल में मगर अलफ़ाज़ नहीं है,

काश ! के कुछ ऐसा होता इस जहाँ में की ,
ख़ामोशी बयाँ दिल की हालत करती,

सच जानिए ये भी है दावा मेरा ,
बेतरह से फिर  आप हम पे मरती,

मगर हक़ीक़त-ए-जहाँ में ऐसा रिवाज़ नहीं है,
आगाज़े इश्क तो यहाँ, अंज़ाम नहीं है,

जज़्बात है दिल में मगर अलफ़ाज़ नहीं है,
कुछ कहना है तुमसे मगर हालात नहीं है,

Saturday, September 3, 2011

तन्हां रातों में शबनम के कतरे गिरते है



तन्हां रातों में शबनम के कतरे गिरते है
 आसमाँ  भी  दिन   में  कँहा  रोता   है
शब - ए- ग़म  का  साथी  चाहिए  कोई
सुबहो  तो  सारा  जमाना साथ होता है

Wednesday, August 31, 2011

जिंदगी को देखो कभी आईने में तुम

ग़ज़ल
31-08-2011, 01:45 A.M
जिंदगी को देखो कभी आईने में तुम
हर लम्हा तैरता हुआ मिल जाएगा

कौन कहता है वक़्त लौटता नहीं
मैं कहता हूँ वक़्त और कँहा जाएगा

सुर और ताल का संगम है संगीत जैसे
वक़्त और जिंदगी में वही राग़ मिल जाएगा

ना ताल ज्यादा बढ़े ना सुर धीमा लगे
वक़्त में ज़िन्दगी,ज़िन्दगी में वक़्त मिल जाएगा

Palak - A Sweet Daughter born on 29-12-1997 !

27-05-1997
03:00 P.M

This Ghazal was written to welcome my child in this universe & then on 29-12-1997 my sweet daughter 'Palak' born to fragrance the life. She is the sweetest......................


इक पल में ही मेरी धडकनें बढ़ा गया
प्यार जब अपनी सब हदें भुला गया

साहिल की जुस्तज़ू थी इक उम्र से हमें
लो मुहब्बत का कारवां साहिल पे आ गया

जुनूँ असरदार हो रहा है आँखों में मेरी
तेरी पलकों का बोझ मेरी पलकों पे आ गया

ये खूबसूरत सी निशानी मुहब्बत की ही है
मेरा लख्ते-जिगर तेरे जिस्म में आ गया



Tuesday, August 30, 2011

ना जुंबिश है जुबां पे

ग़ज़ल - Latest
29-08-2011, 05:10 P.M.


 ना जुंबिश है जुबां पे,ना ज़हन में कोई ख़्याल आया है
 हर लम्हा हसीँ लगता है, जबसे तेरा चेहरा सामने आया है


 अपनी नज़रों से ना कुरेद मेरे ख्वाबों को
 जो तीर चला, वो सीधा दिल के पार आया है

 बेशक रहने दे राज़ छोट्टी-बड़ी बातों को
  इश्क कँहा ? हुस्न से कभी पार पाया है

 जाने दे दुनिया के सलीके को दस्तूर समझ के
  बस शरीफों पे ही तो यहाँ  हर इल्ज़ाम आया है

Saturday, August 27, 2011

यही है, यही है, यही है ज़िंदगी

यही है, यही है, यही है ज़िंदगी
ए-बशर तू इसमें ढूंढता है क्या?

गुज़र गया जो, नसीब था तेरा
परे नसीब से और बूझता है क्या?

जी ले, आज यही  मौका है मिला
हक़ीकत से   और जूझता है क्या? 

 जिआ नहीं तो, मर ही तो गया
बाद मौत के और सूझता है क्या ?








Friday, August 26, 2011

जुबां ही गर फिसल जाये तो क्या करें

  Ghazal                        24-04-1994
                                       06:40 A.M


जुबां  ही  गर  फिसल  जाये  तो  क्या  करें
कहने को कुछ हो कुछ और कह जाये तो क्या करे,


हालत - - परेशानी में सर - - राह जा रहे हो
जलवा - - हुस्न--जानां मिल जाये तो क्या करें


वो  इन्तखाब  करे  ना   करे  ये बात  और  है
खुशबू - - जिस्म से कोई बहक जाये तो क्या करे


बेशक  तेरी  शोखी   देती  है   जिंदगी   सबको
'नितिन' ग़र मरने को बेताब हो जाये तो क्या करें


अच्छा ! येबताओ मुझेइश्क जतानाआता हैया नहीं,

                  
अच्छा ! ये बताओ मुझे इश्क जताना आता है या नहीं,
समझ जाते हो जज़्बात मेरे मुझे बताना आता है या नहीं !
दिल सुनाता होगा कई फसाने तुम्हे,
मेरी धडकनों का सबब भी सुनाता है या नहीं
इक बात सुनाता हूँ,इक बात रह जाती है
ये बात बताता हूँ ,वो बात रह जाती है
शायद वो बात मेरे चेहरे पे जाती है
मेरे चेहरे को समझाना तुम्हे आता है या नहीं

अच्छा ! ये बताओ मुझे इश्क जताना आता है या नहीं !

मेरी ग़ज़ल में खुद की एक पहचान रखना

मेरी ग़ज़ल में खुद की एक पहचान रखना
फिर मिलेंगे, इक ऐसा भी मक़ाम रखना

रवायतें बेअसर हो जाती है, इकअरसा बाद
इस अरसे का हर दम,  तुम ख़्याल रखना

 मेरी तमन्ना तो अब भी मचल जाती है
 अपनी तमन्ना पे तुम,  हिज़ाब रखना

  ज़माने की गर्दिशों में ग़र्क न हो जांए कंहीं
  मेरे इश्क का ऐ खुदा तुम लिहाज़ रखना

Thursday, August 25, 2011

मेरे इश्क की मज़ार पर आया कीजिएगा

28-03-1994
08:30 A.M

मेरे इश्क की मज़ार पर आया कीजिएगा
हंसाया कीजिएगा, कभी रूलाया कीजिएगा 

खुशबू बिखेरेंगे फूल तेरे हुस्न के,
चराग़ दिल के भी कभी जलाया कीजिएगा 

जश्न मनायेंगे मिल कर बर्बादी का मेरी,
सरूर आँखों में भर के आया कीजिएगा 

उदास रह के ना मेरी रूह को परेशाँ करना,
चहक बुलबुल वाली भी सुनाया कीजिएगा

गुस्ताख़ी कहीं मुझसे हो ना गयी हो


  
गुस्ताख़ी कहीं मुझसे हो ना गयी हो

Thursday, August 25, 2011
12:46 AM

गुस्ताख़ी कहीं मुझसे हो ना गयी हो
नज़रें तुम में कहीं खो ना गयी हो 

मै चुराता रहा नज़रें तुम्हें देख कर
चोरी नज़रों से कहीं हो ना गयी हो  

चाहता कहाँ थामै शायर बनना
शायरी तुम पे कहीं हो ना गयी हो  

रिश्ता तो कुछ भी नहीं हमारा तुमसे
आशनाई तुमसे कहीं हो ना गयी हो