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Thursday, December 27, 2012

मस्त बनाती है तेरी चाहत मुझको

मस्त बनाती है तेरी चाहत मुझको
दीवाना तेरी आँखे मुझे बना देती है

क्या सोचती रहती है हरदम सूरत तेरी
मेरे दिल में इक ख़लिश सी जगा देती है

सिमटी हुई है लाली जो रुखसार पे तेरे
फिज़ां को किस कदर रंगीन ये बना देती है

कभी लगता है तेरी ये गर्म साँसें
मेरी बहकी साँसों को पनाह देती है

भोली तेरी सूरत पे वो मस्तानी हँसी
जानम मेरे जज़्बातों को सहला देती है 

कोठे पे बैठ कर मुस्कराने वाले

26-03-1994
01: 30 AM
कोठे पे बैठ कर मुस्कराने वाले
मोहब्बत की फज़ा ये क्या जाने

खेलना नैनों से खेल है इनका
नैन मिलाने का मज़ा ये क्या जाने

दो पैसों पर अपना बदन उघाड़ दे
दिल खोलने की रज़ा ये क्या जाने

ज़ाल जिस्म का है ज़िंदगी इनकी
ऐसी ज़िंदगी है सज़ा ये क्या जाने 

मंजर ये उनको भी दिखाओ कोई

12-10-1991
07:00 PM
मंजर ये उनको भी दिखाओ कोई
उजड़ा मेरा आशियाँ फिर बसाओ कोई

कहते थे सुर्ख लब है तुम्हारी खातिर
मधुरस फिर से उनका पिलाओ कोई

उजाले होते थे ज़ुल्फ़ सँवारने से उनकी
अँधेरो को अब तो दूर भगाओ कोई

जानते है हर हाल में हूँ खुश मै तो
कुछ तड़प भी मेरी उन तक पहुँचाओ कोई

ज़िंदगी तो बेअसर है अब बिन उनके
मुझको इस ज़िल्लत से बचाओ कोई 

Thursday, December 20, 2012

पहले बात करती थी मौसम की फूलो की


31-07-2011
5.25 p.m. 

पहले बात करती थी मौसम की फूलो की
अब आटे दाल का भाव सुनाती हो मुझे !

पहले आँखों में तेरी शोखी थी प्यार की
अब किराया घर का बताती हो मुझे

पहले सुलझाता था उलझी जुल्फे आपकी
अब बिजली के तारो में उलझाती हो मुझे

पहले तारे गिनता था यादों में आपकी
अब दिन में तारे दिखाती हो मुझे !

उदास फिज़ां में मुस्कराहट सी नज़र आती है

18-01-1993
01:00 AM
उदास फिज़ां में मुस्कराहट सी नज़र आती है
देखे हम भी बहार किस तरह चमन में आती है

घुँघरू जो बजने लगे है ,  ज़ेहन में मेरे
बेशक तेरे कदमों की ही आहट आती है

ढूँढो कोई तो सवाब मेरी दिवानगी का भी
खुद-बा-खुद मेरी धड़कन बढती जाती है

हज़ार कोशिश की है बा-अदब रहने की मैने
खुशबू तेरे बदन की मेरी साँसों को बहकाती है

हाँ सच तौबा कर लूँगा मयकशी से भी मै
इक बार पी लूँ जो आँखे तेरी छलकाती है 

बहुत मुमकिन था मिल जाते किसी मोड़ पर वो

बहुत मुमकिन था मिल जाते किसी मोड़ पर वो
हम मायूस इतने थे मगर की राहों पे चलना छोड़ गए 

एहसानमंद हूँ तन्हाईयो तह-ए-दिल से आपका

एहसानमंद हूँ तन्हाईयो तह-ए-दिल से आपका 
की अपने जिस्म से उनकी ख़ुशबू लेता आया हूँ 

Tuesday, October 16, 2012

मधु-बेला

मधु-मास के
मधुर-मिलन की
मधु-बेला
तुम हो .............

शबनम, चाँदनी की
शीतलता का
उद्गम स्रोत
तुम हो .............

तुम उष्म
सुबह किरण की लालिमा
प्रेम-सूत्र का पहला
आखरी मंत्र
तुम हो .............

तुम चंचल , निश्छल
निष्काम प्रेरणा
निशि-दिन चाहत
तुम हो ..............

तुम पूर्ण, तुम सम्पूर्ण
तुम पूर्णता में पूर्ण
पूर्णता का पहला
आखरी बिंदु
तुम हो ...............
 

Friday, October 12, 2012

शिकायत भी आप से,


शिकायत भी आप से,
गिला भी आप से,
हर ख्याल भी आप से ,
और प्यार भी आप से,
हर सुबहो का आगाज़ आप से,
और शाम का ख़ुमार आप से,
हर लम्हा मुख़ातिब है आप से,
हर लम्हे की पहचान आप से,

क्या आपको भी है प्यार आप से ?

मंज़र जज्बातों के किस तरह बदल रहे है

30-11-2007
12:05 AM

मंज़र जज्बातों के किस तरह बदल रहे है
सुलगती चिताओं पर चूल्हे जल रहे है

जुस्तजू-ए-रूह से बे-राब्ता है आलम
खौफ़ के सायो में जिस्म चल रहे है

किस पर करे ऐतबार किस से ख़फ़ा हों
हर इक आस्तीन में साँप पल रहे है

खुशबू का पता नहीं ताज़गी भी नहीं रही
गुलशन में किस तरह के ग़ुल खिल रहे है 

Saturday, October 6, 2012

फ़लसफ़ा आपका खूब पहचाना, मगर देर से

फ़लसफ़ा आपका खूब पहचाना, मगर देर से
शिकायते करके मोहब्बत जताते हो आप 

आब-ए-पाक़ भी हूँ पहचान ले मुझे

आब-ए-पाक़ भी हूँ पहचान ले मुझे
गंगा में उतर के पावन बन जाऊँगा 

आब-ए-शर भी हूँ मेरी परवाज देख
ज़हन में उतर मदहोशी बन जाऊँगा

आब-ए-अब्र का अब ज़िक्र क्या करूँ
लबों से लगा तश्नगी मिटा जाऊँगा

आब-ए-हयात भी है इक वजूद मेरा
दिल में उतर मोहब्बत बन जाऊँगा

आब-ए-पाक़ = पवित्र पानी
आब-ए-शर   = शराब ,
आब-ए-अब्र  = बरसात
आब-ए-हयात = अमृत 

Thursday, October 4, 2012

न पहला कभी कदम उठायेंगे

23-08-1994
05:45 PM

न पहला कभी कदम उठायेंगे
बस यूँ ही तुम्हे चाहते जायेंगे

तेरी खुशियों की ख़ातिर सनम
बेशक हम जान से जायेंगे

मंज़र देख लेना ये कभी भी
तुम्हारी राहों में पलकें बिछायेंगे

मोहब्बत कहाँ हुई ज़माने में अब तक
हम मोहब्बत करके दिखायेंगे 

मेरे ख़्यालों में रह-रह कर आने वाले

24-01-1994

मेरे ख़्यालों में रह-रह कर आने वाले
तेरा नाम ही बस मेरा एहतराम है

दिल में बसी है इक तस्वीर तेरी
सिवा दीद के तेरे मुझे क्या काम है

झुकती-सी नज़र आती है ज़ुल्फें तेरी
खत्म सुबह, बस मेरी तो वहीं शाम है

गुजश्ता हो गई हस्ती मेरी यकीं मानों
ज़ुबां पर बस इक तेरा ही नाम है

तेरा दीवाना है मिट जायेगा तुम पर
शहर में आज ये चर्चा आम है

 

छुड़ा के दामन जा तो रहे हो

23-03-1994
11:15 AM

छुड़ा के दामन जा तो रहे हो
सोच समझ लो क्यूँ जा रहे हो ?

मेरी लगी तो बुझ न सकेगी
मिटाए अपनी हँसी क्यूँ जा रहे हो ?

खुश रह सकोगे ऐसे में तुम क्या ?
बहाये अश्कों को अपने क्यूँ जा रहे हो ?

नादाँ हूँ मैं तो समझ सका न
लुटाये अपनी जवानी क्यूँ जा रहे हो ?

समझ सके न जिसे मेरी जवानी
सुनाये ऐसी कहानी क्यूँ जा रहे हो ?

 

Tuesday, October 2, 2012

तुम्हारे एहसान जो मुझ पे क़ायम थे कल तक

21-09-1994
09:20 AM

तुम्हारे एहसान जो मुझ पे क़ायम थे कल तक
बहुत शिद्दत से मैं आज भी महसूस करता हूँ

तुम्हारी आँखों से छलके हुए उन पैमानों की 
वो ख़ुमारी मैं आज भी महसूस करता हूँ

रौनक थी कल तुम्हारी चूड़ियों से दिल में
झंकार चूड़ियों की मैं आज भी महसूस करता हूँ

कल तुम्हारे प्यार ने सँवारी थी ज़िंदगी मेरी
ज़िंदा हूँ उसी बदौलत मैं आज भी महसूस करता हूँ 

तूँ जानती भी है रहती है मेरे ख़्यालों में तूँ

24-01-1994

तूँ जानती भी है रहती है मेरे ख़्यालों में तूँ
तेरे चाँद से चेहरे को नज़रों में बसा लेता हूँ

तूँ छत पर बैठ कर मेरे बारे में सोचती तो होगी
मैं अपने इश्क़ को कुछ इस तरह से मना लेता हूँ

कभी रफ़्ता-रफ़्ता चलती होगी कभी बे-इख़्तियार भी
वहीं बैठा तेरी धडकनों को सहला लेता हूँ

तूँ देख कर मुझको मुँह फेर ले चाहे
हँस कर फिर मैं अपने अश्कों को छिपा लेता हूँ

मेरी हर साँस है तेरी ही तो दी हुई
ये सोच कर मैं अपनी साँसों को बहला लेता हूँ
 

Monday, October 1, 2012

दर्द हो दिल में तो इश्क़ फ़रमाइए

दर्द हो दिल में तो इश्क़ फ़रमाइए
हुस्न-ए-जानाँ के दर्द का लुत्फ़ उठाइए

नसीब ग़र बेपरवाह है हर्ज़ न मानिये
हाथ उठा कर दुआ कीजिये नसीबों को मनाइए

आना-जाना, खोना-पाना सब उसके हाथ है
क्यूँ ना दर्द-ए-दिल फ़िर उसको दिखाइए

अपने ग़मों से आप ही नावाकिफ़ न हो 'दोस्त'
अच्छा रहेगा ग़मों को दिल से मिलवाइए

 

Saturday, September 29, 2012

मेरा मुद्दा है क्या ? तूँ जान तो ले

14-01-2010
10:30 AM
मेरा मुद्दा है क्या ? तूँ जान तो ले
नज़दीकियाँ बढा मुझे पहचान तो ले

दिल की धड़कन है या कोई शोर
बढा के हाथ ख़ुद  ये जान तो ले

मौक़ा मिला तो लूट भी लेना मुझको
दिल से एक बार अपना मान तो ले

दिल भी हिस्सा है इसी जिस्म का
छेड़  के सुरों को कोई तान तो दे

खेल बाद में खेल लेगी दुनिया अपना
मोहब्बत एक बार दिल में ठान तो ले 

Friday, September 28, 2012

ज़रा सी बात पर वो रूठ कर चला गया

ज़रा सी बात पर वो रूठ कर चला गया
सदिया लग गई फिर उसे मनाने में

मैंने मज़ाक में उसे ईमान कह दिया
वो लौट के आया न फिर ज़माने में

मिटने में उसने इक पल न गंवाया
मेरी उम्र बीत गयी उसे बनाने में

अब बीत गया वो पल जो भारी था
बाकी बस  तड़प बची है सुनाने में 

तेरी चाहतों के समंदर से इक मोती माँग के देखेंगे

तेरी चाहतों के समंदर से इक मोती माँग के देखेंगे
मोहसिन - कभी तेरा इनायत-ए- करम  देखेंगे 

तक़दीर की बात छोड़ के तूँ मौज ले प्यारे

तक़दीर की बात छोड़ के तूँ मौज ले प्यारे
नसीब रख के एक तरफ़ तूँ  खोज ले प्यारे
देने वाले ने उदासी और मुस्कराहट दे दी
तेरी मर्ज़ी है अब किसको तूँ रोज़ ले प्यारे 

Tuesday, September 25, 2012

पलकों पे सज़ाने के लिए कुछ ख़्वाब भेजूँगा

पलकों  पे सज़ाने के लिए कुछ ख़्वाब भेजूँगा
हाँ तुझे तस्वीरों की भी इक क़िताब भेजूँगा
बच्चों की तरह अब ज़िद करना छोड़ दे
अगले ख़त में तुझे नींद का सैलाब भेजूँगा 

Monday, September 24, 2012

मंज़ूर है तेरा आना शहर में मौसम की तरह

मंज़ूर है तेरा आना शहर में मौसम की तरह
कभी सर्द लहज़ा दे,कभी बरस मोहब्बत की तरह

सिलसिले फासलों के चले तो इल्म हुआ मुझे

सिलसिले फासलों के चले तो इल्म हुआ मुझे
खुद से कितनी दूर निकल चुका था मैं

Wednesday, September 19, 2012

फ़रेब-ए-इश्क़ को इस तरह से जिया है मैंने


18-09-2012
01:30 PM
फ़रेब-ए-इश्क़ को  इस तरह से जिया है मैंने
सादगी को नाम मोहब्बत का दिया है मैंने

जाम-ए-दोस्ती को जब भी रक़ीब ने बढाया 
शराफ़त  से बस लबों से लगा लिया है मैंने

ख़लूस-ए-इश्क़ कहीं बेक़दर  न हो जाये
इज़हारे-इश्क़ को दफ़न कर  लिया है मैंने

मेरा मोहसिन, मेरी मंज़िल, मेरा मक़सूद है तूँ
शामिल तुझे ज़िंदगी में कर लिया है मैंने

भेजे है लाख़ इशारे मोहब्बत में भिगो के
तेरे वजूद से लिपटे रहे सकूँ कर लिया है मैंने

 

Sunday, September 16, 2012

भीगा हुआ बदन वो बरसात का समाँ

15-08-2009
07:00 AM
भीगा हुआ बदन वो बरसात का समाँ
भूले नहीं भूलता कल रात  का समाँ

कपकपाते होंठ वो लरज़ता हुआ जिस्म
रुखसार पर  बूँदे वो फ़ुहार का समाँ

अबरू के शिकन वो बाँहों के घुमाव
आँचल को निचोड़ वो निखार का समाँ

कलियों का महकना वो फ़ूलों का बहकना
मदहोश-सा कर गया वो बहार का समाँ

यूँ तो कट रही है मसरुफियत से ज़िंदगी
जीने का लुत्फ़ दिला गया वो प्यार का समाँ
 

सोचता हूँ तुमसे ये कहूँ वो कहूँ सब कुछ कहूँ

02-12-2010
11:15 PM
सोचता हूँ तुमसे ये कहूँ वो कहूँ सब कुछ कहूँ
मगर करता हूँ तुमसे प्यार ये मैं कैसे कहूँ  ?

मरासिम हों गहरे तो इज़हार में वक्त लगता है
ग़र इज़हार ना करूँ तो ज़िंदा मैं कैसे रहूँ  ?

तुम्हारी नज़रें भी तन्हाँ कर सकती है मुझे
जाम हाथ में ले, डूबा शराब में कैसे रहूँ  ?

फनाँ होना मेरी मंज़िल, मेरा शौक़ जान इसे
कहाँ तक बचूँ और सलामत मैं कैसे रहूँ  ?
 

इक लम्हा सिसकता रहा तेरे इंतज़ार में

इक लम्हा सिसकता रहा तेरे इंतज़ार में
मेरा तज़रबा था, वो बच न पाया इस हाल में

वो क़ायल वस्ल का, मेरा नसीब हिज़र है
बेचारा ! इज़हार  ढूँढ ना  पाया इनकार में

उसे फ़िक्र नहीं कब आया कब चला गया
मुझे परवाह कँहा, मैं खोया हूँ तेरे ख़याल में

वो ख़ामोश सा ही कुछ बोलना चाहता था मुझे
मेरी तवज्जो थी कभी छत पे कभी दीवार में

वो जाते-जाते छोड़ गया इक शिकवे का निशाँ
लगता है तेरे दर  पे मैं आ गया बेकार में



 

Friday, September 14, 2012

मेरे जज़्बात-ओ-अल्फ़ाज़ का लिहाज़ कौन करे ?

मेरे जज़्बात-ओ-अल्फ़ाज़ का लिहाज़ कौन करे ?
मैं मिन्नत करूँ, कभी ये ख़ुदा ना करे

वस्ल की तकरीरों ने उलझा लिया जब हमें
तूँ बता हिज़्र का इस्तकबाल यँहा कौन करे ?

अनजान हो कोई तो उसे बता दूँ  सब कुछ
सब कुछ पहचाने जो, उसका चारा कौन करे ?

मेरे नसीब की बात है तो बुलंद हूँ मैं
परे नसीब से किसी का इंतज़ार कौन करे ? 

Saturday, August 4, 2012

तू दूर कहाँ मुझसे

तू
दूर कहाँ मुझसे ,
देख..........
समझ के
बदन तेरा
छुआ
पानी को  मैंने......

हथेली
में लिया,
नज़र भर 
देखा और
होंठो से छुआ 
मैंने ........

लबों की
मिठास बढ़ सी गयी,
रूह की तश्नगी
मिट सी गयी
जिंदगी को इक
करार सा आ गया 

बस तेरी याद से ही
जो ख्वाब था ,
हकीकत में आ गया 
पानी था वो
नशा मोहब्बत का
छा गया .........


Friday, July 27, 2012

दिलबर के नक्श-ए -पा से हम रिश्ता बनायेंगे

26-06-1994
12:10 AM
दिलबर के नक्श-ए -पा से हम रिश्ता  बनायेंगे
बंदगी करेंगे उसको हम अपना खुदा बनायेंगे

बिखेरेंगे मोती तेरे तबस्सुम के उसमे
अश्कों से अपने इक दरिया बनायेंगे

चमकेंगे सितारे तेरी यादों के जिसमे
तेरे ख्वाबों के सहारे आसमाँ बनायेंगे

मुरझायेगा फूल इस चमन में जो भी
पिरो के धागे में उसकी माला बनायेंगे

अब से बिछडेगा जो भी महबूब से अपने
शिरकत कर  उसको नया जहाँ बनायेंगे

मैं सब कुछ अपना तुझे सौंप दूँ

20-08-1994
09:15 PM
मैं सब कुछ अपना तुझे सौंप दूँ
पर दिल को अपने समझाऊँ कैसे 

खौफ़ ज़माने का मुझमे कितना भरा है
दूर दिल से अपने भगाऊ कैसे

तेरे इश्क ने भी बेशक बेचैन किया है
बेचैनी दिल की अपनी छुपाऊ कैसे

ज़ख्म दिल में कितने गहरे हुए है
हाय सजना तुम्हे दिखाऊ कैसे

तेरा इश्क ही इसका सवाब  है सजना
अपने ज़ख्मो पे मरहम लगाऊ कैसे 

Saturday, July 14, 2012

छूते है जब नन्हें हाथ मुझे

09-07-2012
12:35 PM
छूते  है जब नन्हें हाथ मुझे
खो जाता हूँ नए सँसार में

खुदा जाने इतनी कशिश क्यूँ  है
छोट्टे-छोट्टे बच्चों के प्यार में

खेल-खिलोने, गुडिया, गाड़ी
सब सजते है इनके दरबार में

इनकी मुस्कराहट सारे ग़म भुलादे
सारी खुदायी है इनके अंदाज़ में

Wednesday, July 4, 2012

लेकर दो चार इश्क की बातें

24-04-1994
07:10 AM
लेकर दो चार इश्क की बातें
खुद को गमज़दा बनाये बैठे हो

अंदाज़-ए-ज़िंदगी  जब यही है
खुद को क्यूँ  सज़ा दिलाये बैठे हो

घर भरा पड़ा है नसीहतों से तुम्हारा
इक नसीहत को क्यूँ  भुलाये बैठे हो

सँवारनी है ज़िंदगी जब खुद ही तुम्हे
इंतज़ार ये  किसकी लगाये बैठे हो

'नितिन' से क्यूँ  नाराज़ होते हो
चोट तुम खुद ही खाए बैठे हो

इक तुमसे दिल लगाने से पहले

23-08-1994
6:00 PM
इक तुमसे दिल लगाने से पहले
मेरे दिल का आलम कुछ और था

न समझ थी ग़म-ए-ज़िंदगी की मुझे
जो समझा था वो कुछ और था

कसमसाता था हर दम ये बदन मेरा
जानम गुज़रा ऐसा भी इक दौर था

परेशाँ रहता था क्यूँ ये दिल मेरा
समझ आया मेरी धडकनों का शोर था

मुफलिस के नसीब से क्या रकम लूटी निकली

21-07-1995
3:00 PM
मुफलिस के नसीब से क्या रकम लूटी निकली
सोने-सी संभाल रखी थी दो रोटी सूखी निकली

तमन्नाकश ही रहा सदा भरपेट खाने के वास्ते
जो आस बंधी कभी वो आस भी झूठी निकली

इक रात बहक गया था जब दावत के ख्वाब में
हफ्ता भर के लिए फिर किस्मत रूठी निकली

भर के लाया था पानी जो बच्चों के वास्ते
घर पहुँचा  तो वो हँडिया भी फूटी निकली


रंग जो तेरी बिंदिया का होता

09-09-1994
10:00 PM
रंग जो तेरी बिंदिया का होता
किस शौक से तुम माथे पे लगाती

लाली जो तेरे होठों की होता
किस कदर मुझसे प्यार जतलाती

स्याह-मुकद्दर जो मेरा कजरा होता
हुस्न-ए-जानाँ तुम आँखों में बसाती

ग़र नसीबों में होता मेरे प्यार तुम्हारा
किसी न किसी बहाने तुम मुझे बुलाती

चाँद पूछेगा तो क्या जवाब दोगे ?

19-05-1997
11:30 AM
चाँद पूछेगा तो क्या जवाब दोगे ?
चुप रहकर लोगों से तो बच जाओगे

हर सितारा टिमटिमा कर सवाल करेगा
इन सितारों से कैसे बच पाओगे ?

दिल धड़केगा तो चेहरा हैरान होगा
इश्क को फ़िर कैसे छुपा पाओगे ?

मुझको ख़ुद में ही जब महसूस करोगे
फिर कैसे जुदा तुम रख पाओगे ?

Tuesday, June 19, 2012

गुजश्ता मोहब्बत, तमाशबीन ज़माना

09-04-2008
06:30 PM
गुजश्ता मोहब्बत, तमाशबीन ज़माना
बेशक, बा-शक होता है तेरा न आना

सर-ए-राह  ख़ार तिस कारवाँ-ए-ग़ुबार
बेहतर इस से क्या हो, इश्क़ का फ़साना

शाम ढल चुकी सारी शमाँ जल चुकी 
हरफ रख न दे कहीं कोई तेरा बहाना

मेरा हश्र जो हो, चाँद को क्या फ़िकर 
दिल को छू जाता है तेरा नज़रे झुकाना  




मैं नशे में बस बहकता ही रहूँ

22-09-09
11:15 PM
मैं नशे में बस बहकता ही रहूँ
तेरी आँखों से मय मिलती रहे

वो चाँदनी बस मैं पीता ही रहूँ
तेरे जिस्म से जो फिसलती रहे

महकता ही रहूँ खुशबू से मैं
तेरी ज़ुल्फ़ से जो उड़ती रहे

नगमों को मैं सुनता ही रहूँ
तेरी पायल है जो बजती रहे

मोहब्बत को मैं मनाता ही रहूँ
मेरे इश्क़ में जो सजती रहे


Saturday, June 9, 2012

कोई  लाख़ अलग समझे, सब एक  है 

कोई  लाख़ अलग समझे, सब एक  है 
नीयत कोई बुरी  करले रूह पर एक है
कई रंग क़ायनात में, कोई जुदा नहीं
सब रंग मिला दो तो वो भी एक है
कोई किसी भी राह चले तमाम ज़िंदगी
क्या फरक भला जब क़ायनात एक है
कोई दर्द समझ ले इसको या मज़ा 
कैफ़ियत है अलग शै मगर  एक है
कोई फ़कीर कोई वज़ीर ज़िंदगी की बात 
अंज़ाम मौत ही मगर सबका एक है
जिंदगी अलग-अलग बस मौत एक है

Saturday, June 2, 2012

रात के अंधेरो में जिस्म टटोलता है कोई

02-06-2012
04:10 PM
रात के अंधेरो में जिस्म टटोलता है कोई
मेरे ख्वाबों को शिद्दत से तोलता है कोई

मैं आवाज़ दूँ तो मेरी बात नहीं सुनता
ज़ुबां ख़ामोश रख रूह से बोलता है कोई

मैं पूछता हूँ उसको, अपना पता नहीं देता
भर के तस्वीरों में जिंदगी डोलता है कोई

रख के तक़दीर को मेरी इस जमाने से परे
मेरे नसीबों में इक रस-सा  घोलता है कोई

Thursday, May 31, 2012

हम बेघरों को घरों में बसने की आदत नहीं

31-05-2012
06:10 PM
हम बेघरों को घरों में बसने की आदत नहीं
आवारा बहते है इन हवाओं के साथ

कभी बर्क से  दिल्लगी, कभी शर्त  अब्र से
कौन चलता है पहले इन घटाओं के साथ

जुगनुओं से खेले, कभी तितलियों को छुआ
फूलों से खिलते रहे इन फिज़ाओं के साथ

सहरा को पुचकारा, कभी समंदर को ललकारा
कौन छुपता है पहले इन पनाहों के साथ

बंदगी को बहलाया, कभी सादगी को नहलाया
कौन बचता है पहले इन गुनाहों के साथ

Monday, May 28, 2012

रूठे-रूठे से है वो, हम भी खफ़ा-खफ़ा से

28-05-2012
12:15 PM
रूठे-रूठे से है वो, हम भी खफ़ा-खफ़ा से है 
इसी कशमकश में है की आख़िर मामला क्या है ?

तेरे दिल की जो धड़कन है मेरे दिल में धड़कती है 
दिल फिर क्यूँ  पूछता है की आख़िर फ़ासला क्या है ?

सब कुछ है पास मेरे कोई जुस्तज़ू , आरज़ू भी नहीं 
ये आसमां क्यूँ  पूछता है की आख़िर माँगता क्या है ?

मेरा इश्क़ कम नहीं और तेरी मोहब्बत कम नहीं 
कोई फ़िर  भी पूछता है की आख़िर  जानता क्या है ?

Friday, May 18, 2012

ग़र इजाज़त हो हज़ूर इक टुकड़ा ख्व़ाब मांगता हूँ

ग़र इजाज़त हो हज़ूर इक टुकड़ा ख्व़ाब मांगता हूँ
अपनी खुश-नसीबी  ज़ेर-ए -जनाब मांगता हूँ
मेरी तकदीर का कोई पन्ना ग़र पड़ा है तेरे पास
तो उस पे लिखी इबारत का जवाब मांगता हूँ  

मेरे अश्क़ जो मुस्करा के पलकों से गिरे

14-05-2012
11:30 PM
मेरे अश्क़ जो मुस्करा के पलकों से गिरे 
तमाम मेरे ग़मों की ज़िंदगी सँवर गई 

इतना क़रीब आकर उसने छुआ था मुझे 
मेरे ज़ेहन में उसकी खुशबू  बिखर गई

तक़दीर का अफ़साना मुझ को पता न था 
मिल कर  उस से मेरी ज़िंदगी बदल गई 

अब देखता है क्या इस ग़मगीन जहाँ में 
इक आह-सी आई और आके गुज़र गई  

Thursday, May 17, 2012

वो भीगे हुए लम्हे सूखे नहीं है अब तक

17-05-2012
09:15 AM
वो भीगे हुए लम्हे सूखे नहीं है अब तक 
लड़कपन की पहली बारिश में साथ बिताये थे 

लरज़ उठे थे जज़्बात-ओ-एहसास उस वक़्त 
पहली बार जब हमने हाथ मिलाये थे 

न कुछ मैं कह सका न कुछ तुम कह पाए 
कुदरत ने झूम-झूम के कितने गीत गाये थे 

इक मैं था, इक तुम थे और किसका था वजूद ?
हाँ चाँद, सितारे, बादल,घटाएं सब मिलने आये थे 

मैं तो वाकिफ़ न था दुनिया के किसी फ़रेब से 
सारे नज़ारे मुझे बस जन्नत दिखाने आये थे  

Monday, May 14, 2012

मैं लूटने तो न आया था ख्यालात तेरे

मैं लूटने तो न आया था ख्यालात तेरे 
क्यूँ पशेमाँ कर रहे है सवालात तेरे 
गर ढूँढना है दिल तो "उसके" पास जा 
यहाँ अपना ही कुछ बचा नहीं पास मेरे 

देखूँ जो तुम्हें तो कोई बात याद आये

19-05-1995
02:00 PM
देखूँ  जो तुम्हें तो कोई बात याद आये 
फसल-ए-बहार याद आये और माहताब याद आये

 महव हो चुका था तन्हाँ तवील रातों में 
मुद्दतो बाद कहाँ मुझे जज़्बात याद आये 

परेशां तम्हारी ज़ुल्फ़ मेरे जज़्बात की तरह 
किस खातिर अब मुझे ये सवालात याद आये 

पलकों से उतरकर शबनम जो रुखसार पर पड़ी 
तुम्हारी आँखों के मुझे वो सवालात याद आये 


मुझसे नज़दीकियां बढाने की कोशिश न करो

मुझसे नज़दीकियां बढाने की कोशिश न करो 
गम के सागर में तुम डूब जाओगे 
इससे पहले की समझ पाओ  मुझे 
ख़ुद अपने आप को तुम भूल जाओगे 

बड़ी आम सी गुज़र रही है ज़िंदगी

13-05-1992
04:20 PM
बड़ी आम सी गुज़र रही है ज़िंदगी 
कुछ यहाँ  पर मैं ख़ास चाहता हूँ 

पत्थरों से खेलना शौक़ नहीं मेरा 
नाज़ुक से सुर्ख़ रुखसार चाहता हूँ 

उजाले ढलें कहीं काली घटाओं में 
बेतरतीब ज़ुल्फों की कतार चाहता हूँ 

नज़दीक आऊँ इस तरह बेखुदी के मैं 
धड़के दिल मेरा बे-इख्तियार चाहता हूँ

सहला सकूँ मैं कुछ जज़्बात अपने 
हँसी ऐसा कोई हमराज़ चाहता हूँ  

दौलत की जुस्तज़ू न तमन्ना शोहरत की है 
या इलाही मैं थोड़ा-सा प्यार चाहता हूँ  

Thursday, May 10, 2012

ये अँधे, ये तपते, ये जलते जज़्बात

04-05-1995
10:00 PM
ये अँधे, ये तपते, ये जलते जज़्बात 
घिसटते, फिसलते ये गिरते जज़्बात 

जज़्बात क्या कहे जज़्बात की कहानी 
हर मक़ाम पर ये बदलते जज़्बात 

चले आते है मासूम से पर जाने क्यूँ 
तोड़ जाते है दम ये घुटते जज़्बात 

जज़्बात वो मचलता दिल है जिससे 
चाहिए किसे है ये सस्ते जज़्बात 

नामुराद शराब ने है मारा मुझ को

26-03-1994
12:45 AM
नामुराद शराब ने है मारा मुझ को 
वरना तो हर हुस्न का है इशारा मुझको 

संगदिल जहाँ  में सब बेवफ़ा थे मगर 
ज़िंदगी में मिला इसका है सहारा मुझको 

जीता तो फिर किसके लिए जीता 
ख़ातिर इसके ही जीना है गँवारा मुझको 

इसको दी दिलासा, हौंसला उसे भी दिया 
ले-दे के ग़म उठाना है सारा मुझ को 

हसरत-ए-ज़िस्म को मोहब्बत का पैकर बनाने वाले

10-05-2011
11:00 AM
हसरत-ए-ज़िस्म को मोहब्बत का पैकर बनाने वाले
ज़माने में देखे है मोहब्बत को रुसवा करने वाले

दैर-ओ-हरम में जाकर अपना सर झुकाने वाले
वजूद-ए-बशर का क़त्ल सरेआम करने वाले

देते है नसीहत सदा दामन-ए-पाक़  की हमें
अपने ज़मीर पे सौ-सौ पैबंद लगाने वाले

तेरा नसीब है जो तुझ को मिल कर  रहेगा
बनते है कई ख़ुदा, तुझको रहमत देने वाले

मेरा इश्क गवाह है तुझको हाज़िर-नाजिर जान के
'नितिन' जिया है तेरे लिए "ओ" जिंदगी देने वाले 

Sunday, April 29, 2012

टूट कर बिखरने को भी हौंसला चाहिए इक

‎29-04-2012
12:30 PM

टूट कर बिखरने को भी हौंसला चाहिए इक
वरना सहमे हुए लोग देखे है बहोत

वादा निभाओ तो निभ भी जाता है
और वादा तोड़ने के अंदाज़ देखे है बहोत

लोग मर-मर के जीने को ज़िंदगी कहते है
उनके जीने के इंतज़ाम देखे है बहोत

मौत भी आ जाये तो झूम लूं इक बार
मैंने मरने के ख़्वाब देखे है बहोत

Sunday, April 22, 2012

हाँ पागल हूँ मैं ! हाँ दिवाना हूँ मैं !

21-04-2012
01:30 PM
हाँ पागल हूँ मैं ! हाँ दिवाना हूँ मैं !

ग़म बाँटने का किसी की ग़र है ये सज़ा
तो इस सज़ा का हर बहाना हूँ मैं

हाँ पागल हूँ मैं ! हाँ दिवाना हूँ मैं !

जीता हूँ मैं रोज़, हर शब मरता भी हूँ मैं
गुजश्ता जमाने का इक फ़साना हूँ मैं

हाँ पागल हूँ मैं ! हाँ दिवाना हूँ मैं !

तेरे दिल में भी उतरा तुझे जगाया भी बहुत
तेरे सोये अरमानों का ठिकाना हूँ मैं

हाँ पागल हूँ मैं ! हाँ दिवाना हूँ मैं !

मुझे चाहे कोई क्यूँ, मुझे सराहे कोई क्यूँ
हर तीर चले जिस पर वो निशाना हूँ मैं

हाँ पागल हूँ मैं ! हाँ दिवाना हूँ मैं !


Friday, April 20, 2012

जिंदगी कहती है होकर मेरा इक बार देखो

20-04-2012
12:29 PM
जिंदगी कहती है होकर मेरा इक बार देखो
जिस के ख्वाब है, वो जन्नत बार-बार  देखो

कोशिश क्यूं है मुझसे पार पाने की बता
डूब कर पूरी तरह मुझमे इक बार देखो

मैं तो सदियों से तुम्हारी हूँ तुम्हारी रहूंगी
अपना कर मुझको इक बार देखो

अपना-अपना नज़रिया है सब समझने का
सोच बदल कर मेरे यार इक बार देखो

Thursday, April 19, 2012

जज़्बा हर दिल में इक मोहब्बत का होता है

24-01-1993
10:00 PM
जज़्बा हर दिल में इक मुहब्बत का होता है
हर मुहब्बत को मंजिल मिल जाये ये ज़रूरी तो नहीं

हाँ मुहब्बत है मुझको तुमसे ही "जानम"
एहसास तुम्हे भी इस बात का हो ये ज़रूरी तो नहीं

ग़म हँस कर भी झेलने वाले है इस जमाने में 
अश्क़ ही बहाये तेरी याद में ये ज़रूरी तो नहीं

दिल शाद रह सकता है फ़कत इस जज़्बे से ही
मयकशी से ही दिल बहलाए ये ज़रूरी तो नहीं 

ज़िंदा हूँ तो भी मिसाल क़ायम है मेरी मुहब्बत  की
न पाया तुझे तो फनाँ हो जाये ये ज़रूरी तो नहीं  

Wednesday, April 18, 2012

तेरे महल का कोई दरीचां खुला न था

02-05-1992
09:45 AM

तेरे महल का कोई दरीचां खुला न था
मुफ़लिस तेरा दीदार फिर कैसे करता

तुझसे मिलने का कोई ज़रिया पता न था
दीवाना विसाल-ए-यार फिर कैसे करता

ग़म उठाता रहा ता-उम्र जुदाई में तेरी
अश्क बहाने के सिवा भी वो क्या करता

ख़ुदा तेरी खुदाई से था ताल्लुक इसका
वरना 'नितिन' यहाँ जीकर भी क्या करता 

तंज़ कितने सहे ज़माने में रंज़ोग़म के साथ 
सजदा करता न इश्क में तो क्या करता  

Wednesday, March 21, 2012

आज हम अपनी मोहब्बत का हिसाब देखेंगे

18-01-1993
01:25 AM
आज हम अपनी मोहब्बत का हिसाब देखेंगे
हुए किस तरह है हम नाकाम देखेंगे

हाँ जोड़ लेंगे उसमे सभी तेरे कस्मे-वादे
भेजे कितने थे हमको पैगाम देखेंगे

साज़िश थी मेरे दिल पर हर इक इनायत
कितना होंगे, कितना हो चुके बर्बाद देखेंगे

सहे कितने है सितम, है कितना जोश बाकी
हम खोल कर अपने दिल की किताब देखेंगे

ज़िया समेट तो लूं तेरे गमों का पहले
क्या था तेरे रूख़ पर फिर नकाब देखेंगे

थोड़ा सा धुआं

थोड़ा सा धुआं उड़ जायेगा, थोड़ी सी राख़ बह जाएगी
सुलग कर मेरी जिंदगी और क्या रह जाएगी
हाँ गर कर लो इकरारे मोहब्बत मुझसे
सांस दो घड़ी और चल जाएगी

Saturday, March 17, 2012

मुद्दत से ज़िक्र नहीं है वफाओं का

मुद्दत से ज़िक्र नहीं है वफाओं का
बदला हुआ है रूख़ इन हवाओं का

बहारें आ भी जाती है, नहीं भी
मिलता नहीं पता इन फ़ज़ाओं का

गुनाह जिंदगी से हुआ भी  नहीं
गुलिस्ताँ खिल रहा है सज़ाओं का 

हुस्न वाले बा-वफ़ा भी होते है
सताया हुआ हूँ मैं इन अदाओं का

तेरी खुशबू में इक अज़ब अदा है

04-01-2001
07:55 AM
तेरी खुशबू में इक अज़ब अदा है
जीने की कला है मौत की सदा है

तेरे तब्स्सुम से कहूं फूल खिलते है
बहारों का तू खुद ही खुदा है

उदासियों के समंदर है कितने गहरे
तेरी आंखें कहाँ गमों से जुदा है

तेरा हुस्न है इक जलता हुआ शोला
मेरा वजूद इसमें जलना बदा है

Friday, March 16, 2012

मस्ती

मस्ती  है  शगल  मेरा  दोस्तों
सांसों में अपनी मौज रखता हूँ
महंगे  है  शौक  मेरे   दोस्तों
सबसे कीमती दोस्त  रखता  हूँ

Wednesday, March 14, 2012

ख़्वाब, रंग और अक्स, हक़ीकत

01-12-2010
10:15 PM
ख़्वाब, रंग और अक्स, हक़ीकत
या हो फिर आस्मां, हवा की बातें

झरने, बादल, बिजली, बारिश,
या हो फिर बस घटा की बातें

कली, फूल हो, महक हो खुशबू
या हो फिर मौसमे ग़ुल की बातें

कुछ भी तो नहीं है तुम बिन
बेशक़ हो सारे जहाँ की बातें

तुमको देखा तो सर झुक गया
ख़त्म हो गयी यहाँ-वहाँ की बातें

Saturday, March 10, 2012

शायर तेरा नसीब

शायर तेरा नसीब मुझे अजीब सा लगता है
ग़म से तेरा रिश्ता मुझे नज़दीक सा लगता है

अपने ही तब्बस्सुम से बेचैन हो उठता है कभी
कभी तमाम उदासीयों  का रक़ीब सा लगता है

किस्से किस तरह तेरे अजीबतर हो रहे है
वजूद ही तेरा अब मुझे तक़सीम सा लगता है

कितने धोखे मिले ज़माने से अब तक
सादा  दिल ही रहा मुझे शरीफ़ सा लगता है 

शायर तेरा नसीब मुझे अजीब सा लगता है
ग़म से तेरा रिश्ता मुझे नज़दीक सा लगता है

Friday, March 9, 2012

खोद कर ज़मीन

 खोद कर ज़मीन इश्क बोया जाये
चलो मोहब्बत के पेड़ों तले सोया जाये

बहुत हो चुकी लहू की रवानगी
... मज़हब को लहू से न भिगोया जाये

हिन्दू-मुस्लिम होकर गुनाहगार बन गये
इंसानियत को अपनी अब धोया जाये

मरते रहे गर यूं लड़-लड़ कर हम
वजूद ही अपना न कहीं खोया जाये

मोहब्बत ही मोहब्बत हो हर इंसान में
सपना क्यूं न इक ऐसा संजोया जाये

Wednesday, March 7, 2012

गीले कागज़ की तरह हो गए रिश्ते अपने

24-09-2004
11:45 PM
गीले कागज़ की तरह हो गए रिश्ते अपने
जितना भी छेडू,  और बिखर जाते हैं
फीकी हो जाती है ख़ुशीयाँ इक अरसा बाद
ग़म हर अरसा और निखर जाते है

अपने दिल पर मैं हरदम ऐतबार रखता हूँ .....

24-09-2004
07:45 PM
अपने दिल पर मैं हरदम ऐतबार रखता हूँ
मिले ज़ख्म कोई नया इसे तैयार रखता हूँ

अपने  ही देखे  पर अब भरोसा न रहा
कहे कुछ कोई, कहाँ मैं ध्यान रखता हूँ

किस को चाहिए फ़क्त वस्ल ही इश्क में
ग़म-ओ-ख़ुशी हो मैं  इत्मीनान रखता हूँ

हर गाम पर देता हूँ मैं फ़रेब ग़मों को
उदास चेहरे पे इसलिए मुस्कान रखता हूँ








Monday, March 5, 2012

तभी तो खुशियाँ भी ग़म को रोती है

05-03-2012
09:25 PM
तभी तो खुशियाँ भी ग़म को रोती है
हर क्यूं के पीछे इक कसर  होती है

यूं तो बीत ही जाती है जिंदगी ख़ुशी से
"उसके" इक सहारे  की कसक  होती है

जब लुट चुका हो जज़्बातों का कारवां
"उसको" भी बस तब ही  ख़बर होती है

यही है हक़ीकत इसे ज़िंदगी कहते है
ये ज़िंदगी तो बस यूं ही बसर होती है

Saturday, March 3, 2012

मुझसे जो मिलो तो तक्लुफ्फ़ न रखना

03-03-2012
12:05 PM
मुझसे जो मिलो तो तक्लुफ्फ़ न रखना
कह देना दिल की बात बाकी  न रखना


लबों को बोल देना आज बोलना  पड़ेगा
मोत़ी से दांतों को भी बिखरते  रखना

आँखों को चमकने,पलकों को झपकने देना
जुल्फें  उड़े जिधर कोई परवाह न रखना

ज़ेहन को कह देना मदहोशी का है आलम
ख्वाबों की तासीर को हक़ीकत में रखना









Thursday, March 1, 2012

कुछ कहना है तुमसे मगर हालात नहीं है

01-01-1995
10:30 PM
कुछ कहना है तुमसे मगर हालात नहीं है
जज़्बात है दिल में मगर अलफ़ाज़ नहीं है

काश ! कुछ ऐसा होता इस जहाँ में की
ख़ामोशी बयाँ दिल की हालत करती

सच जानिए ये भी है दावा मेरा
बेतरह से फिर आप हम पर मरती

मगर हक़ीकत-ए-जहाँ में ऐसा रिवाज़ नहीं है
आगाज़-ए-इश्क तो है यहाँ अंज़ाम नहीं है

जज़्बात है दिल में मगर अलफ़ाज़ नहीं है
कुछ कहना है तुमसे मगर हालात नहीं है

मुझको नहीं है कोई भी शुबहा तुम्हारे प्यार में

01-03-2012
01:15 PM
मुझको नहीं है कोई भी शुबहा तुम्हारे प्यार में
डरता हूँ तूँ रुसवा न हो जाये मेरे इज़हार से

दिल से मिल ही गया जब दिल का नज़रिया
सोचो फिर रह ही गया क्या इकरार में

वस्ल का सकून तो पल भर का रहा हज़ूर
उम्र भर का कऱार है तेरे इंतज़ार में

तुमको अपना माना तो जल गया ज़माना
ख़ुशी देखी नहीं जाती मेरी संसार से
दोस्तों को नहीं कभी भूले है हम
"दोस्त" तुमको भी इक समझते है हम
यूं तो हर दुआ तुम्हारे साथ है
समझो तो हम सदा तुम्हारे साथ है
पर ले लो इनको भी कुछ देते है हम
"सुप्रभात"के जरिये ही कहते  है हम
मुस्कराती रहो गाती रहो हे हर दम
खुशियाँ सरे जहाँ की पाती रहो तुम  
दुआ की है गम दूर से भी देखने को न मिले
मिले तो बस ख़ुशी सारी जिंदगी में मिले

Tuesday, February 28, 2012

मुझसे नज़दीकियां

23-08-1994
06:15 PM
मुझसे नजदीकियां बढाने की कोशिश न करो
ग़म के सागर में तुम डूब जाओगे
इससे पहले की तुम मुझे समझ पाओ
खुद अपने आप को तुम भूल जाओगे

मुहब्बत की रुसवाई न पाई? हद हो गयी

20-08-1994
05:10 PM
मुहब्बत की रुसवाई न पाई? हद हो गयी
इश्क में नाकामी न पाई? हद हो गयी

अज़ी नाकामी तो मंज़िल है मुहब्बत की
मुहब्बत की मंज़िल न पाई? हद हो गयी

ख़ैर निभाता तो कौन?यहाँ मुहब्बत करके
साथ निभाने की कसम न खाई? हद हो गयी

बचाता तो कौन तुम्हे ग़र्क होने से
आशियाने में आग न लगाई? हद हो गयी  

पुतला में मिट्टी दा हाँ

16-09-1991
03:00 PM
पुतला में मिट्टी दा हाँ
ते मिट्टी विच मिल जाना है
कानू बनाया इस मिट्टी दा
इसी कशमकश विच मर जाना है
जे मिल सकी ना तेरी मिट्टी मेरी नाल
इक मिट्टी च ता असी मिल जाना है
जे मिल ही गयी ऐ दो कड़ी दी जिंदगी
प्यार दे सहारे असां जी जाना है
खोला क्यों मैं दर्द दिल दा तेरे अगे
असां सब तो अपना दर्द छुपा जाना है

Saturday, February 25, 2012

मुझे दुश्मन बना लो कोई अपना

05-10-1994
07:15 PM
मुझे दुश्मन बना लो कोई अपना
के दोस्तों से अब डर लगता है

जहां में कोई गुनाह हम करे न करे
क्यूं हर इल्ज़ाम हमारे सर लगता है

इससे दुश्वार और क्या दिन आएंगे
पत्तों पे बिगड़ता हुआ शज़र लगता है

आप तो थे अहले- वफ़ा क्या हुआ ?
बेमुरव्वत ज़माने का असर लगता है

तेरी शिकायतों में तेरा प्यार छुपा लगता है

25-02-2012
10:00 PM
तेरी शिकायतों में तेरा प्यार छुपा लगता है
दिल की धड़कनों में इसका इज़हार छुपा लगता है

बेशक सताया होगा तुझे ज़माने ने बहोत
इन सितमों में ही  तेरा  करार छुपा लगता है

हाँ खेला होगा कोई तेरे दिल से भी ज़रूर
लुत्फ़ उठाया तुने,कोई फ़नकार छुपा लगता है

जितना भी दूर लिखने की कोशिश हो मेरे "दोस्त"
उसके इर्द-गिर्द ही तेरा संसार छुपा लगता है

Friday, February 24, 2012

जिंदगी जीकर ही तो मौत का इस्तकबाल करते है

24-04-2012
09:40 PM
जिंदगी जीकर ही तो मौत का इस्तकबाल करते है
खुशदिली से जीने वाले कभी मौत से डरते है ?

मौत भी तो एक सच है इस जिंदगी की तरह
आज जिंदगी की आगोश, कल मौत की चलते है

ख़ुदा को यकीन था मुझ पे, तो दे दी जिंदगी
उसने  दी जिंदगी हम   इबादत करते है

यूं तो जो चाहो ले लो मुझसे ख़ुदा के वास्ते
न दुखे दिल किसी का इस गुनाह से डरते है

तेरे दर पे मोहब्बत की फ़रियाद लाया हूँ

23-08-1994
06:30 PM
तेरे दर पे मोहब्बत की फ़रियाद लाया हूँ
इक टूटा हुआ दिल और जज़्बात लाया हूँ

गिनने बैठो तो न गिन सको मेरे ज़ख्मों को
ऐसी अपने सितमों की सौगात लाया है

बचा रखना किसी तरह अपने चमन को
कुफ़र भरे कांटों की बरसात लाया हूँ

मेरे अपना यंहा कुछ भी तो न था
जो दिया ज़माने ने वो साथ लाया हूँ

Tuesday, February 21, 2012

मेरे इशारों का मतलब समझेगा वो

23-03-1994
01:00 PM
मेरे इशारों का मतलब समझेगा वो
इन दरारों का मतलब समझेगा वो

नज़दीक आएगा जब मेरे दिल के वो
इन शरारों का मतलब समझेगा वो

आग इश्क की जब भी लगेगी दिल में
इन बहारों का मतलब समझेगा वो

मेरे इश्क की खातिर चमकते है  जो
इन सितारों का मतलब समझेगा वो

मुझे यकीं है अपनी तहरीरों पर
मेरे अशआरों का मतलब समझेगा वो

मेरे दिल में आग लगा के मुस्कराते है वो

22-04-1994
07:00 PM
मेरे दिल में आग लगा के मुस्कराते है वो
पहले तो नज़र मिलते है, फिर नज़रें चुराते है वो

किसको पता?किसको ख़बर? कौन जनता है ये?
दीवाना बना कर अपना अब नाज़ दिखाते है वो

जीना मुहाल किया है पहली ही नज़र में मेरा
जैसे जानते नहीं ऐसे सामने से गुज़र जाते है वो

कैसी उल्फ़त? कैसा इश्क? कैसी मुहब्बत की रज़ा?
झटक के ज़ुल्फ़ों को किस कदर इतराते है वो

मैं फ़िराक में हूँ बस इक इशारे की उनकी
झुका के पलकें अदा से फ़कत शरमाते है वो

Monday, February 20, 2012

इक महजबीं का ही ग़म नहीं उठाता हूँ मैं

22-02-1994
10:00 AM
इक महजबीं का ही ग़म नहीं उठाता हूँ मैं
हर  इक शख्स का ग़मगुसार हूँ मैं

फ़कत ज़ुल्फ़-ए-परीशाँ नहीं सुलझाता हूँ मैं
मुकम्मल ज़ुल्मत-ए-हयात से परेशाँ हूँ मैं

धड़कता नही दिल मेरा इक शोख़ पर ही
हर इक हसीना पर जाँ-निसार हूँ मैं

वीराँ क्यूं रहे कोई भी मयखाना-ए-चश्म
हर नज़र से पैमाना छलकाए ऐसा मयख्वार हूँ मैं

महका जाये  जो  हर  गुल-बदन को
यकीँ जानिए ऐसी फ़स्ल-ए-बहार हूँ मैं

मेरा इश्क तभी परेशान रहा होगा

09-09-1994
11:10 PM
मेरा इश्क तभी परेशान रहा होगा
वो हुस्न इसका दरबान रहा होगा

वो लुभाता रहा होगा इसे वादों से
ये हर वादे पे कुरबान रहा होगा

किसको फ़ुरसत जो टटोलता मेरे दिल को
वो चोर इसका निगेहबान रहा होगा

मुझे नहीं ख़बर मेरा घर कहाँ गया
वो कमजर्फ़ मेरा मेहमान रहा होगा

Thursday, February 16, 2012

Philoshy of Love - II वो पुरजोश चीख !


27-05-1997
04:30 PM
मुझे याद है तुम्हारी
वो पुरजोश चीख !
जिसे न चाहते हुए भी तुम्हे
दबाना पड़ा था
अपने होठो पे सारी लाली
समेट के
अपने ही दांतों से उन्हें
गड़ाना पड़ा था  !

और अब उस चीख की गूंज
इक सपना बन कर तुम्हारे
शरीर में पल रही है

उस वक़्त जो आंसू ढुलक
आए थे तुम्हारे कपोलो पे
उन्होंने एक सजीव सपने का
रूप ले लिया है !

उन नमकीन मोतियों में जो
प्यार की मिठास थी
उसी मिठास के चलते तुम
ये सपना साकार कर सकती हो

हाँ  ! तुम माँ बन सकती हो !

Wednesday, February 15, 2012

छूना चाहता हूँ मै

28-05-1997
11:00 PM
छूना चाहता हूँ मै
उन उंचाईयों को
डूबना चाहता हूँ मै
उन गहराईयो में
बदन के हर मोड़
से गुज़रकर
जो पहुंचादे मुझे आत्मा
की धरती पर
उस धरती पर मै एक
फूल उगाना चाहता हूँ
जो बोल सके
हंस सके
खेल सके
अपने मासूम हाथो से
मुझे छू सके
एक विशाल स्तम्भ
बनकर
जो दुनिया से
कह सके
हां ! मै तेरे प्यार की
निशानी हूँ !

Tuesday, February 14, 2012

दिल खोल कर अपना दिखा सकोगे ?

20-08-1994
5:30 PM

दिल खोल कर अपना दिखा सकोगे ?
क्या ग़म-ए-ज़िंदगी का बोझ उठा सकोगे?

तुम्हारे हुस्न की अदाएं मै समझ रहा हूँ
वफा-ए-इश्क की रस्में निभा सकोगे ?

ये वो शय नही कोई उड़ा दे रंग इसका
तस्वीर-ए-मोहब्बत को दिल में बिठा सकोगे ?

सहना मुश्किल है दुश्वारिया ज़माने की
दामन-ए-वफा को रुसवाई से बचा सकोगे ?

सौदे बाज़ी का नही खेल इश्क है ये
अपना सब कुछ क्या इस पे लुटा सकोगे ? 

तेरे मेरे दरमियाँ कुछ हो जाए तो बात बन जाए

26-04-1994
03:45 PM

तेरे मेरे दरमियाँ कुछ हो जाए तो बात बन  जाए
ये ख़्वाब की बात हक़ीकत हो जाए तो बात बन जाए

मैं इशारा करू और तू आ जाए छत पर
तू छत पर आकर मुस्करा जाये तो बात बन जाये

मय छलकती है जो  तुम्हारी आँखों से हरदम
इक पैमाना हमें मिल जाये तो बात बन जाये

सलवटे बेशुमार पड़ी हो पैरहन पे तुम्हारे
 इल्ज़ाम हमारे सर आ जाये तो बात बन जाये

Friday, February 3, 2012

दिल से निकली आवाज़ टूट कर बिखर गयी

03-02-2012
01:10 PM
(अतुल जी आपकी आह ....................)

दिल से निकली आवाज़ टूट कर बिखर गयी
मेरे जज्बातो की लहर न जाने किधर गयी

उन तक पहुंची के नहीं दीवाने की आह
खुशबू सी फ़ैल गयी वो चाह जिधर गयी

मेरे दर्द की दवा तो कोई क्या करता ?
मज़ा लोगो का बन गयी जो उधर गयी

ज़माना समझा न समझा ख्यालात मेरे
रौशनी प्यार की दिल  में घर कर गयी

ज़माना हंस रहा है मै रो भी नहीं सकती

03-02-2012
12:45 PM

(मीना जी आपके शे"र  को ग़ज़ल में कहने की कोशिश , गुस्ताखी हो तो माफ़ कर देना )

ज़माना हंस रहा है मै रो भी नहीं सकती
हालात-ए-मजबूरिया सह भी नहीं सकती

गुजश्ता मोहब्बत आज भी ढूँढता है दिल
बात दिल की किसी से कह भी नहीं सकती

बेशक नफ़रत की आग भी नहीं है दिल में
क्यूं समंदर-ए-इश्क में बह भी  नहीं सकती

ये दर्द-ए-ज़िंदगानी का वो फ़साना है दोस्तों
इस दर्द के बिना अब रह भी नहीं सकती




Saturday, January 28, 2012

इज़हारे इश्क न आया मुझको.......

16-02-2011
09:20 A.M

अल्फाज़ कितने भी पिरो दें मोतियों की तरह
इज़हारे-ए-इश्क वो कर कभी कर नहीं पाते

जज़्बात है जो मोहब्बत के दिल में
ज़ुबां से कभी वो हम कह नहीं पाते

ख्वहिशों  का कारवां भी देखा है आते-जाते
ख़्वाबों से आगे कभी कुछ चाह नहीं पाते

अधूरी सी लगती है ज़िंदगी मोहब्बत के बिना
मगर मोहब्बत है जिससे हम कह नहीं पाते

काश ! मेरी नज़रों में पढ़ लें वो सब कुछ
नज़र भर देखे बिना हम तो रह नहीं पाते

इज़हारे मोहब्बत आया न मुझे .........2011

16-02-2011
09:20 A.M

(इज़हारे मोहब्बत आया न मुझे .........)

अलफ़ाज़ कितने भी पिरो दे मोतिओं की तरह
इज़हारे-ए-इश्क वो कभी कर नहीं पाते

जज़्बात है जो मोहब्बत के दिल में
ज़ुबां से कभी वो हम कह नहीं पाते

ख्वहिशों का कारवाँ भी देखा आते-जाते
ख़्वाबों से आगे कभी कुछ चाह नहीं पाते

अधूरी सी लगती है ज़िंदगी मोहब्बत के बिना
मगर मोहब्बत हो जिससे हम कह नहीं पाते

काश ! मेरी नज़रों में पढ़ लें वो सब कुछ
नज़र भर देखे बिना हम तो रह नहीं पाते

Wednesday, January 25, 2012

कुछ न कहेंगे आपसे बिछड़ जाने के बाद

26-06-1995
12:55 A.M

कुछ न कहेंगे आपसे बिछड़ जाने के बाद
सोचा करेंगे आपको बिछड़ जाने के बाद

शगुफ़्ता न रह सकेंगे, महकेंगे फूल कैसे
ख़ुशबू कंहा पे होगी ? बिछड़ जाने के बाद

सितारों को ग़म तो होगा असर चाँद पर भी होगा
चमका करेंगे कैसे ? बिछड़ जाने के बाद

किसको पता चलेगा ? हवाएं चली किधर को ?
ज़ुल्फें कंहा उड़ेगी ? बिछड़ जाने के बाद

पलकों पे ढल के कतरें आँखों को नम करेंगे
शबनम भी रो पड़ेगी बिछड़ जाने के बाद

तेरी बस इक झलक को तरसता हूँ


(1991  से इक ग़ज़ल तरसाती  सी .......मगर लुभाती सी ..........)

तेरी बस इक झलक को तरसता हूँ
वास्ता तुझसे रहे इस बात को तरसता हूँ

खुशबू तेरे सांसों की ले न पाया तो क्या
अपनी हर सांस तुझे देने को तरसता हूँ

फ़ितरत से तेरी कोई रश्क-ओ-ग़म नहीं मुझे
हस्ती क्यूं अपनी मिटाने को तरसता हूँ

दुश्मनी का भी तो कोई वजूद नहीं तुमसे
फिर भी मैं तेरी दोस्ती को तरसता हूँ

ऐसा नहीं है हमको ऐतबार नहीं ख़ुद पर
न जाने क्यूं तुझे पाने को तरसता हूँ

Friday, January 20, 2012

ख़्वाब, रंग और अक्स, हक़ीक़त

01-12-2010
10:15 P.M
(मेरी या तुम्हारी, सारी बात )

ख़्वाब, रंग और अक्स, हक़ीक़त
या हो फिर आसमाँ, हवा की बातें

झरने, बादल, बिजली, बारिश
या हो फिर बस घटा की बातें

कली, फूल हो, महक हो खुशबू
या हो फिर मौसम-ए-गुल की बातें

कुछ भी तो नहीं है तुम बिन
बेशक हो सारे जहां की बातें

तुमको देखा तो सर झुक गया
ख़त्म हो गयी यंहा-वंहा की बातें

Tuesday, January 17, 2012

एहसास - 2008

14-12-2008
11:45 A.M

आज सुबह मोहब्बत ने सवाल किया मुझसे
तुझे तपती धूप कहूं? या ठंडी छांव कंहूँ  ?

मेरे ज़ेहन ने जवाब दिया उसको -
न मै तपती धूप हूँ - न ठंडी छांव हूँ ,
जब सर्द हवाएं सताए तुम्हे - तो मुझे मीठी धूप समझ लेना
जब सूरज की किरणे जलायें तुम्हे -  तो ठंडी छांव समझ लेना

मेरे इश्क का कोई एक आयाम नहीं है
जिस रूप में ज़रुरत हो मोहब्बत की -
उस रूप को मेरा एहसास समझ लेना ,

फूलों में बसा है खुशबू की तरह
चाँद में छिपा है चांदनी की तरह
मेरा इश्क हरदम साथ है तुम्हारे
तुम्हारे दिल में बसा है धड़कन की तरह

तुम खुशबू को मेरा एहसास समझ लेना
चांदनी को मेरा प्यार समझ लेना
जब भी बरसे बादल जम कर आसमाँ से
मेरी मोहब्बत का ये इकरार समझ लेना

Saturday, January 14, 2012

आ जीने का तुझे अंदाज़ सिखा दूँ

10-12-2007
11:50 A.M

आ जीने का तुझे अंदाज़ सिखा दूँ
खोलती नहीं जिंदगी वो राज़ बता दूँ

गुनगुनाती है हवाएँ क्या वादियों में
बजता है कौन सा वो साज़ बता दूँ

इबारतों में बसते है अलफ़ाज़ फक़त
कौन से छुपे है उनमे जज़्बात बता दूँ

बर्क-ए-मोहब्बत जो छूती है तेरे बदन को
कौन सा मांगती है वो मक़ाम बता दूँ

Monday, January 9, 2012

क्या करोगे जब कभी हमारी याद आएगी ?

19-05-1997
11:00 A.M

क्या करोगे जब कभी हमारी याद आएगी ?
क्या ख़्वाबो में गुम होकर माज़ी में जाओगे ?

बिस्तर को समझ कर तुम वजूद मेरा
क्या लिपट कर तकिये से आंसू बहाओगे ?

देर तक लरज़ाएगी जब तुम्हे यादे मेरी
क्या उस दम खुद को भी भूल जाओगे ?

दर हकीक़त जो मेरे मुक़द्दर में न था
क्या ख़्वाबो में देकर मेरे जज़्बात सहलाओगे ?


वो रस्मों - रिवाज़ की फ़क़त दीवानी है

एक शे 'र -
26-05-1992

वो  रस्मों - रिवाज़ की फ़क़त दीवानी है
सच  पूछो  तो  ये  बातें  पुरानी  है
रूह आपकी मुझसे जुदा हो सकती नहीं
नज़र में आपकी क्या इश्क जिस्मों की कहानी है ?